बकुळीची फुले ....
दिसामाजी काहीतरी लिहित जावे ..प्रसंगी अखंडित वाचित जावे .... संत रामदास स्वामी
Monday, April 13, 2015
असेच काहीसे ५ (हिंदी बुडबुडे)
हम, वो और महफिल...
होश खोने के लिए पीते है हम आजकल....
वरना मय खानो में रात गुजारनेवालो में से हम नहीं थे....
आपने तो हमारी सदाए अनसुनी कर दी...
वरना भरी महफ़िल में इज़हारे इश्क़ करनेवालो में से हम नहीं थे....
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